संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं का अधिक से अधिक राजनीति में प्रवेश हो सकें। इस विधेयक में प्रावधान है कि लोकसभा दिल्ली विधानसभा और सभी राज्यों के विधान-सभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। यानी कि महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी। इस ऐतिहासिक बदलाव के बाद से सक्रिय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेंगी। जिससे महिलाएँ भी देश की राजनीति और विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
मुख्य विशेषताएं :-
1. पहली बार 12 सितंबर 1996 को पेश किया गया था बिल।
2. पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ है महिला आरक्षण बिल।
3. लोकसभा में 181 हो जाएंगी महिला सांसदों की संख्या।
Women Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र (Parliament Special Session) के दूसरे दिन नई संसद में महिलाओं से जुड़ा ऐतिहासिक बिल पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में मंगलवार को महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) पेश किया। इस विधेयक के कानून में बदलने के बाद सदन में महिलाओं की 33 प्रतिशत अनिवार्यता हो जाएगी।
महिलाओं के लिए 33% (प्रतिशत) सीटें आरक्षित :-
महिला आरक्षण बिल- इस बिल में लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई है। जिसे 128वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत लोकसभा पेश किया गया है। इस संशोधन के बाद लोकसभा में एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की होगी। इस विधेयक के कानून बनने से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलने के साथ ही आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा। जो महिलाओं के लिए बहुत ही सम्माननीय है।
महिलाओं की बढ़ेगी भागीदारी :-
महिला आरक्षण विधेयक में दिल्ली विधानसभा में भी लोकसभा की तरह महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रावधान है। जिसके तहत दिल्ली-विधानसभा में भी महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी अनिवार्य हो जाएगी। इससे राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं को सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। इसके कानून बनने के बाद लोकसभा में कम से कम 181 महिला सांसद चुनकर आएंगी, जो भारत की महिलाओं के लिए गौरवपूर्ण होगा। फिलहाल सदन में महिला सदस्यों की संख्या 82 है।
सभी विधानसभाओं में भी लागू होगा ये प्रावधान :-
लोकसभा और दिल्ली-विधानसभा की तरह ही देश के सभी राज्यों के विधानसभाओं में भी ये बदलाव लागू होगा। जैसे- लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जायेगी। ठीक उसी की तर्ज पर सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की 33 प्रतिशत सीटें अनिवार्य हो जाएगी। जिस कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित सीटों में भी महिलाओं के लिए 33% (प्रतिशत) सीटें आरक्षित हो जाएंगी।
आरक्षण का प्रभाव 15 वर्षों तक रहेगा :-
इस बिल के पास होने के बाद लोकसभा, दिल्ली विधानसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाएगी। महिलाओं के लिए लाए गए आरक्षण 15 वर्षों तक प्रभाव में रहेगा। इसके साथ ही इसमें प्रावधान है कि महिलाओं की सीटों का आवंटन रोटेशन प्रणाली के तहत की जाएगी।
27 वर्षों से लटका है विधेयक :-
महिला आरक्षण बिल पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ है। इसे पहली बार 12 सितंबर 1996 को प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की सरकार ने पेश किया था। हालांकि, उस वक्त ये बिल बहुमत न मिल पाने के कारण पास नहीं हो सका था। इसके बाद भी तमाम सरकारों ने इसे कानून का रूप देने की कोशिश की, किंतु वे कामयाब नहीं हो पाए।